चौबीस अवतार
विप्र रूप धर प्रगट हुये हरि
काव्य सृजन किसी अन्यान्य सृजनधर्मी मित्र के लिए बौद्धिक विलास अथवा रूचि मात्र हो सकता है... किन्तु उनमे से कुछ ही होते हैं जिनके लिए साहित्य ही साधना बन जाती है.. अपने इष्ट और गुरुओं के शुभाशीष का फल मानता हूँ...इन काव्य रचनाओं का सृजन, मेरे लिए एक साधना है और उनके श्री चरणों में श्रद्धा सुमन भी.. आनंद लें 'मधुकर के कुसुम' का...जो आप सभी सुधि पाठकों को अलग अलग विधा में स्तोत्र , गीत, भजन और स्तुतियों के रूप में पढ़ने को मिलेंगी .!!!
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