आदि सृष्टि वर्णन
सृष्टि के आदि में इच्छा हुई
हरि की जब लोक सँवारन की
महातत्व सयुक्त सम्पूर्ण पुरुष
का स्वरूप लिये तन धारण की
जिसमें दश इन्द्रिय के सँग में
मन औ पॉँच भूत सँधारण की
इन सोला कलाओं से युक्त औ व्यापक
विश्वस्वरूप अवधारणकी//१//
कारण रूप के नीर में शेष की
शैया पै योग क्रिया विस्तारे
नाभि से पंकज ,पंकज पै श्री
ब्रह्मा जी प्रगटे चतुर्मुख वारे
अंगों प्रत्यंगों में लोक बने
अति दिव्य अलौकिक दर्शन वारे
विश्वस्वरुप नारायण का
जिसमें सचराचर देवता सारे //२//
बहुतेरे आनन औ बहु नेत्र
अनेकादभुत छवि दिव्य नज़ारे
दिव्य अनेकाभूषण से युत
हाथों में बहु दिव्य अस्त्र सँवारे
दिव्य सुंगंधनुलेपन कीन्हे
दिव्य सुवस्त्र औ मालायें धारे
सर्वाश्चर्य से युक्त असीम अरु
विश्वमुखी प्रभु रूप धरा रे //३//
उदयभानु तिवारी ''मधुकर''
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