Wednesday, 20 August 2014

     
                    













गीता सार

दुर्लभ है मानव  तन  बन्दे , यह  जन्म  न ब्यर्थ गँवा देना /
अधियज्ञ  तुम्हारे  अन्दर  है , सदगुरु  से  ज्ञान जगा लेना //

संसारी   मानव   जाग   रहा , सब   नश्वर  चीजें  पाने  को /
ईश्वर  है  उनके  लिये  निशा, भ्रम  होता  सभी  ज़माने को //
जो  चाहो  ईश्वर  पाना तो , सदगुरु  से  लगन  लगा  लेना /
दुर्लभ है ------------------------------------------//१//

है  योगी  को  संसार  निशा , वह   जागे   ईश्वर   पाने  को /
जो दिखता है वह दिवा स्वप्न, इस जीवन को भरमाने को //
है   गीता  का   संदेश  यही , मन   भाये  तो  अपना  लेना /
दुर्लभ है -----------------------------------------//२//

है  व्याप्त ब्रह्म  जो  कण  कण में, हिय  प्रेम उसे प्रगटाता है /
जो  भक्त  न  कुछ माँगे उसका, अर्पित भोजन  वह पाता है //
है सदगुरु  उस पथ का  राही, मन  उसको  मीत  बना लेना / 
दुर्लभ है ---------------------------------------- //३//

जब तक तू मोहनिशा में है,निज हिय की शक्ति  नहीं  जागे /
बीते   जब  मोहनिशा   तेरी  ,  अंतर्मन  प्रभु   र्में   अनुरागे // 
आसक्ति  घटे चित स्थिर हो , तब योग में लगन लगा लेना /
दुर्लभ है ------------------------------------------//४//

स्वारथ  के  रिश्ते , नाते  हैं , ये   ही   मन  को  भरमाते  हैं /
सत , रज , तम  ये  तीनों  गुण, मनकी  आसक्ति  बढ़ाते हैं //
यदि  चाह  रहे  भवफन्द  कटे , आत्मा  से  मेल  बढ़ा लेना /
दुर्लभ है -----------------------------------------//५//

अनमोल   रतन   तन  तेरा   है, जब  जागे  तभी  सवेरा  है /
है   ब्रह्म   तुम्हारे  अन्दर  ही , बाहर   माया   का   फेरा   है // 
हे भ्रमित बुद्धि प्रभु चिंतन से निज चित्त की शुद्धि करा लेना /
दुर्लभ है ----------------------------------------//६//

दान  ,  धर्म ,  सत्कर्मों   की ,  पूँजी   तेरे    सँग    जायेगी /
और  जो  संग्रह  किया  यहाँ , वह  यहीं   धरी  रह  जायेगी //
रे मानव  अगले जन्म का निज, कर्मों से भाग्य लिखा लेना /
दुर्लभ है ----------------------------------------//७//   

है  निराकार  साकार  वही ,जो ,जिसका ,ध्यान  लगाता  है /
वह उसी रूप को  प्रगट करे , जो  जिसके  मन को  भाता है //
सब  में जो अच्छा लगे तुम्हें , हिय में  वह  रूप  बसा लेना /
दुर्लभ है  ---------------------------------------//८//

कर्तव्य  कर्म  से जो  पाये , वह  ग्रहण करे  नहिं  ललचाये /
निर्लिप्त  रहे  इस  दुनिया में , वह  मानव  योगी  कहलाये //
कहता  हूँ  गीता  तत्व  सखे , इसमें  अनुराग   बढ़ा  लेना /
दुर्लभ है ----------------------------------------//९//

जो  योगी  योग  सिद्धि  पाये,  योगेश  स्वयं  वह  हो  जाये /
सब  सृष्टि  लखे  निज  अन्तर  में,अरु  अंतर्यामी  कहलाये //
''मधुकर'' में केशव सदगुरु बन योगी की ज्योति जला देना / 
दुर्लभ है --------------------------------------//-१० //   
             

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