स्वयंभू सिद्धपीठ गुप्तेश्वर माहात्म्य
दोहा ;-
तपो भूमि जाबालि की , गुप्तेश्वर है नाम /
त्रेता युग में राम ने , बना दिया शिवधाम //
गुप्त राम शिव के मिलन , का प्रमाण यह धाम /
प्रगट हुये शिव जी यहाँ , पड़ा स्वयंभू नाम //
नर्मदा उदगम
जंगल , घाटी , पर्वत , चीरत , चलीं नरमदा माई /
हर हर शिव गुप्तेश्वर हर ध्वनि , कानन पड़े सुनाई,
कानन पड़े सुनाई , हर हर हर महादेव //
सिद्ध साधकों का तपस्थल , रेवा तट सबको भाता /
प्रकृति नटी ने रची गुफायें , जहाँ पहुँच मन रम जाता //
विन्ध्याचल पर्वत माला तरु , छाँव बड़ी सुखदाई /
हर हर शिव गुप्तेश्वर हर ध्वनि , कानन पड़े सुनाई //
निकल पूर्व से पश्चिम हो गईं , दुर्गम जंगल पार किया /
दामिनी सी लहराती पथ में , आगे निज विस्तार किया //
महाबाहु ने जब पथ रोका , सहस धार भईं माई /
हर हर -----------------------------------------------------------------//
चलीं मंडला से आगे , वीरान वनों को सरसाती /
ग्वारीघाट तटों पर सन्तों , की टोली महिमा गाती //
महाआरती धुन मन मोहे , रेवा लहर समाई /
हर हर ----------------------------------------------------------------//
भिन्न भिन्न देवों के मंदिर , पूजन क्रम दिनरात चले /
दीपदान की सुन्दर छवि लख,हृदय भक्ति की ज्योति जले //
इनके तट पर छटा प्रकृति की अनुपम देत दिखाई /
हर हर ---------------------------------------------------------------//
ऋषि जाबाली नगर जबलपुर बसा हुआ है तीरे में /
गुप्तेश्वर था ऋषि तप स्थल , गुफा छिपी थी घेरे में //
करें रुद्र अभिषेक नित्य जिनमें शिव भक्ति समाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//
त्रेता युग में सब ऋषि आश्रम,सिया लखन श्री राम गये /
ध्यान में डूबे मुनि सुतीक्ष्ण के,हिय से अन्तर्ध्यान भये //
मुनि अकुलाय उठे देखा , हैं खड़े राम रघुराई /
हर हर -------------------------------------------------------------//
मुनि सुतीक्ष्ण जी से मिलने , जाबालिऋषी आश्रम आये /
प्रभु दर्शन की आशा में वे , आश्रम में थे विलमाये //
सुना आगमन हुआ राम का , हर्ष न ह्रदय समाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//
कर वन्दन अभिनन्दनजब, जाबालि ऋषी ने ध्यान किया /
शोकमग्न है नगर अयोध्या , राम बिना, यह जान लिया //
रहे अयोध्या राज सभासद , मोह घटा घिर आई /
हर हर ---------------------------------------------------------------//
राम विष्णु अवतारी हैं , इस ओर न ऋषि ने गौर किया /
भरत आग्रह मान अयोध्या , वापस का प्रस्ताव दिया //
रानी केकई को समझाने , की धुन मुनि मन आई /
हर हर ----------------------------------------------------------//
कहा राम ने यह अनुचित है, मुनिवर जो मन ठानी है /
भावुकता है मोह की जननी , आप महा मुनि ज्ञानी हैं //
यह सुन पश्चाताप हुआ , मुनि मन में ग्लानि समाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
मायापति श्री विष्णु राम हैं , जिनने मुझे जगाया है /
दृश्य ध्यान में देखा है जो , वह उनकी ही माया है //
मेरे मन का तम हरने , यह ज्ञान की ज्योति जलाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
स्थितप्रज्ञ वही जिसके मन , हर्ष शोक नहिं आता है /
रहे ब्रह्म में लीन सदा , जग से विरक्त हो जाता है //
ज्ञान हॄदय में प्रगट हुआ, गति मन की नहिं दरशाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
उद्वेलित मन शान्ति हेतु तप, का संकल्प हृदय आया /
मुनिसुतीक्ष्ण का आश्रम त्यागा,रेवा तट मन को भाया //
चले तपस्या हेतु महामुनि , तपस लगन रँग लाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
ग्वारीघाट निकट उत्तर तट, ऊँची एक पहाड़ी में /
शिला के नीचे एक मनोहर ,गुफा छिपी थी झाडी में //
रेवा जल का गुप्त स्रोत था , अति शीतल अँवराई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
हरियाली मन मोह रही थी , सीताफल के पेड़ सघन /
बेर , करोंदे, बेरी , जामुन और मुकुइयों का था वन //
मृगशावक भर रहे कुलाँचें , मन को लेत लुभाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//
मन्द सुगन्धित पवन डोलती,पुष्प खिले बहु कुंजन में /
रस लोभी भौंरे गुँजारैं , हर्ष हुआ ऋषि के मन में //
नाचें मोर कूकती कोयल , शुक रहे शिव गुण गाई /
हर हर --------------------------------------------------------//
भिन्न भिन्न स्वर में खग बोलें,कपि किलकत विचरत वन में /
देख रमा जाबलि ऋषी मन , निकट गुफा के निर्जन में //
तरु के नीचे एक शिला पर , बैठे ध्यान लगाई ई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
वहाँ राम का ध्यान गया जब ,विदा हुये सब मुनियों से /
ऋषि जाबाली दिखें नहीं , पूछा आश्रम के ऋषियों से //
देखा ध्यान लगा कर रेवा तट पर दिये दिखाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//
कुम्भजऋषि के तपस क्षेत्र में, सब ऋषियों से राम मिले /
गुप्त वास में जाबाली से मिलने प्रभु श्रीराम चले //
कृपा दृष्टि कर ग्लानि भक्त की, हरन चले रघुराई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
शंका करें न कोई मन में , राम व्याप्त जग स्वामी हैं /
रूप अनेकों धारण करते , वे हरि अन्तर्यामी हैं //
यह महिमा प्रभु की वे जाने , जिनने लगन लगाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//
राम वही शिव रूप वही, जो रूप भक्त को भा जाता /
रूप वही वह प्रगट करे , जिसमें वह प्राणी रम जाता //
वह अलख और अद्वैत ब्रह्म ,जिसने यह प्रकृति बनाई है /
हर हर -------------------------------------------------------//
ध्यान में देखा शिव ने प्रभु ,ऋषिवर से मिलने को आये /
राम बिना पद त्राण चले , शिव भी रेवा तट को धाये //
गुप्त वास लख गुप्त रहे शिव, दिये न कहीं दिखाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
शिव शंकर रेवा के कंकर , बन पथ में बिछ जाते हैं /
जहाँ राम पग धरते शिव , स्पर्श राम का पाते हैं //
धन्य भाग जाबाली जिस पर, अनुकम्पा बरसाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
इसीलिये रेवा के कंकर , शंकर माने जाते हैं /
प्राणप्रतिष्ठा बिना प्रतिष्टित, ये फल प्राप्त कराते हैं //
जिसका निर्मल भाव वही, यह जान रहा प्रभुताई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
जा पहुंचे रेवा के तट जो , ग्वारीघाट कहा जाता /
उत्तर में है एक पहाड़ी , दृश्य मनोहर मन भाता //
बिछे प्रकृति के हरे गलीचे , शिव भर रहे लुनाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//
बढी शिलाओं के नीचे थी , छाँव धूप नहिं आती थी /
नीचे रेवा स्रोत गुफा भी , मनहर सबसे न्यारी थी //
वहीं निकट ही तप करते , जाबाली दिये दिखाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
कलरव करते पंछी मानो , शिव जी के वे गुण गाते /
नाचें मोर पपीहे बोलें , छटा प्रकृति की सरसाते //
रुकजाता पथ चलता राही , मोहे मन अमराई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
मन आकर्षित करें शिलायें , कोयलिया गाना गाती /
हर हर कहतीं पीपर पाती , उन्हें पवन थी दुलराती //
राम को आते देख प्रकृति ने , अदभुत छटा बनाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//
लखा राम ने ऋषिवर बैठे , तप में ध्यान लगाये हैं /
द्रवित हुये श्रीराम दयानिधि , दृश्य देख हर्षाये हैं //
शिव पूजन के लिये निकट से , रेवा रेत उठाई /
हर हर -------------------------------------------------------------//
बालू से शिव लिंग बनाया , जैसा है रामेश्वर में /
पूजन करके किया स्तवन , शंकर का मंगल स्वर में //
किया इष्ट का ध्यान हृदय , अनुराग धार बह आई /
हर हर -------------------------------------------------------------//
राम द्वारा शिव स्तुति
कण कण में हो व्याप्त तुम्हीं,है काल आपकी गति शम्भो /
सभी दिशायें श्रवण आपके , वरुण रूप रसनेन्द्रि प्रभो //
वेदरूप ओंकारेश्वर जग , जाने नहिं प्रभुताई /
हर हर ------------------------------------------------------------//
सूर्य, अग्नि अरु चन्द्र नेत्र तव, हे महेश शिव त्रिपुरारी /
नभ नाभी अरु वायु श्वास प्रभु , अलख निरञ्जन अविकारी //
प्रगटें हे शिव त्रयम्बकेश्वर , विनय करत रघुराई /
हर हर ------------------------------------------------------------//
(शिवजी द्वारा प्रकट होकर राम की स्तुति)
राम नयन अभिराम आपको , शिव भी करत प्रणाम प्रभो /
पद्मनाभ हे विशालाक्ष , हे विश्वरूप सुखधाम प्रभो //
इन्द्रि नियंता तत्वरूप नहिं थाह किसी ने पाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//
परमानन्द स्वरूप तुम्हीं , सर्वात्म रूप अन्तर्यामी /
मनस बुद्धि के अधिष्ठान है, नमस्कार त्रिभुवन स्वामी //
ऐसा कह प्रगटे गुप्तेश्वर, दामिनी सी द्युति छाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
भेंटे शिव श्रीराम अलौकिक दृश्य न कोई जान रहा /
गुप्त वास में राम इसीसे, नहीं किसी को भान रहा //
नाम हुआ गुप्तेश्वर सबको , झलक न पडी दिखाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//
शिव, श्रीराम मिलन के क्षण में,जाबाली का ध्यान हटा /
सम्मुख शिव,श्रीराम को देखा , मन का पश्चाताप मिटा //
किया प्रणाम राम को ऋषि ने , हरि हिय लिये लगाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//
( जाबालि ऋषि द्वारा श्री राम स्तुति)
हिय में हरि स्पर्श मिला , दिव्यानंदी अनुभूति हुई /
बने नयन सावन के घन , बुझ गई तपन संतुष्टि हुई //
पुनि कर जोरि किया स्तुति , जय जय त्रिभुवन सुरराई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
नील सरोरुह श्याम स्वरूपं , पाणि मनोहर चाप धरं /
व्यापक दिव्य अनादि अजं, रघुवंश विभूषण भूप वरं //
दीनानाथ दया करके , दो बुद्धि विभेद नशाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
कलुष निकन्दन भव भयभंजन ,भू आभूषण ज्ञान घनं /
प्रगटे प्रभु हरने भू भारं , पुरुषोत्तम अभिमान हनं //
त्रिभुवनपति हो गया धन्य मैं ,आज दरस तव पाई /
हर हर --------------------------------------------------------//
मुनि मनरञ्जन रघुनन्दन हे , हृदय ताप, अज्ञान हरं /
शोक हरं प्रभु बोधमयं , जगदादि दयानिधि दोष हरं //
सुर काज हेत प्रगटे भुवि में , मायामय रूप बनाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//
जगत गुँथा तुममें ऐसे , ज्यों सूत्र पिरोई मणि माला /
दीप्तिवान कण कण तुमसे, हो सृष्टि विनाशक तुम ज्वाला //
कर वन्दन अभिनन्दन , निर्मल भक्ति राम की पाई /
हर हर ---------------------------------------------------------------//
(जबालि ऋषि द्वारा शिव जी की स्तुति )
स्तुति कर भगवान राम की , शिव को दण्डप्रणाम किया /
करने मम कल्याण सदाशिव , दरश राम के संग दिया //
धन्य आज मैं हुआ प्रभो , जो कृपा आपकी पाई /
हर हर --------------------------------------------------------------//
आप यहाँ प्रत्यक्ष हुये , श्रीराम समागम के कारण /
जन्म मृत्यु रुज वैद्य तुम्हीं हो , तुम करते भव उद्धारण //
शरण आपकी आया हूँ , दो हरि में विलय कराई /
हर हर ------------------------------------------------------------ //
( शिवजी द्वारा आशीष)
जाबालि तुम्हारे कारण ही , श्रीराम यहाँ चलकर आये /
जो भक्त राम की भक्ति करे , वह सबसे अधिक मुझे भाये //
यह कह ऋषि तप सफल किया ,यशकीर्ति ध्वजा फहराई /
हर हर ----------------------------------------------------------//
गुप्तेश्वर में आकर जो श्री राम , कृष्ण गुण गायेंगे /
कथा भागवत का अमृत रस , मुझको पान करायेंगे //
वे पायेगे हरि अनुकम्पा , मैं भी करूँ सहाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
भक्त तपस्या करते हैं जो , रेवा के तट पर आकर /
सदगुरु बन मैं राह दिखाऊँ , मिलवाऊँ प्रभु से जाकर //
मुक्ति जगत से वे पा जाते , दूँ संयोग बनाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
(श्रीराम जी द्वारा जाबालि ऋषि को आशीष)
कहा राम ने यह तपस्थल, गुप्तेश्वर कहलायेगा /
ऋषि जाबाली पुरम नाम, विख्यात नगर हो जायेगा //
सिद्धि बढ़ेगी कलयुग में शिव,धाम बने सुखदाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
कुछ कालान्तर बाद गुफा यह ,मिट्टी से ढँक जायेगी /
कलियुग में फिर यही गुफा ,शिव अनुकम्पा बरसायेगी //
यह सुन हर्षित हुये महामुनि , भक्ति और गहराई /
हर हर ---------------------------------------------------------//
परम्परा अनुसार शिष्य को, सिद्धि प्रभेद बता जाना /
बनती जाये राह स्वयं ही , ऐसी ज्योति जला जाना //
यह कह अन्तर्ध्यान हुये हरि , हर ऋषि लगन बढ़ाई /
हर हर --------------------------------------------------------//
शिवजी को ऋषिवर के कारण , रामचन्द्र सानिध्य मिला /
रहे यहाँ कुछकाल और प्रभु,राम हॄदय शिव कमल खिला //
इक दूजे के इष्ट हरि, हर , बुद्धि थाह नहिं पाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//
परम वैष्णव साम्बसदा शिव, हिम गिरि के जामाता हैं /
सत्यलोक वे प्राप्त कराते , तारक मंत्र प्रदाता हैं //
राम , कृष्ण दुर्गादि महोत्सव , में द्युति दें झलकाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//
भिन्न भिन्न श्रृंगार मनोहर, शिव के सजते सावन में /
काँवर ,पुष्प चढ़ें घन बरसें, रिमझिम बेला पावन में //
भक्त करें अभिषेक भक्ति नहिं , हिय में रही समाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//
जब आती शिवरात्रि ,भक्तगण शिव पूजन अर्चन करते /
शिव भक्ती से ओत प्रोत , शिव भजनों में डूबे रहते //
पूर्ण कामना करें सदाशिव , कृपा दृष्टि बरसाई /
हर हर --------------------------------------------------------//
ओंकारमय हो जाता , शिवरात्रि पर्व में गुप्तेश्वर /
महा महेश्वर , अदित्येश्वर महाकाल जय भुवनेश्वर //
हर हर मातु ,नर्मदे ,हर सब , बोलें , ध्वज ,लहराई /
हर हर --------------------------------------------------------//
करें साधना गुप्तेश्वर की , अनुकम्पा शिव की पायें /
हो जातीं सब पूर्ण कामना , भक्त उन्हीं में रम जाये //
मधुकर शिव गुप्तेश्वर देते , भव से पार कराई /
हर हर --------------------------------------------------------//
उदयभानु तिवारी ''मधुकर''