Wednesday, 31 August 2016











स्वयंभू सिद्धपीठ गुप्तेश्वर माहात्म्य 

दोहा ;-

तपो   भूमि   जाबालि   की  ,  गुप्तेश्वर    है   नाम /
त्रेता   युग   में   राम  ने  ,  बना  दिया  शिवधाम //

गुप्त  राम शिव के  मिलन , का प्रमाण यह धाम / 
प्रगट  हुये  शिव  जी यहाँ  , पड़ा   स्वयंभू   नाम //

                   नर्मदा उदगम 

जंगल  ,   घाटी ,    पर्वत  ,   चीरत  ,   चलीं   नरमदा   माई /
हर   हर   शिव   गुप्तेश्वर   हर   ध्वनि  ,  कानन   पड़े   सुनाई,
 कानन      पड़े      सुनाई   ,   हर        हर       हर    महादेव //

सिद्ध    साधकों   का   तपस्थल ,  रेवा    तट   सबको   भाता /
प्रकृति  नटी  ने  रची  गुफायें  ,  जहाँ  पहुँच  मन  रम  जाता //
विन्ध्याचल    पर्वत    माला    तरु  ,  छाँव    बड़ी    सुखदाई /
हर   हर  शिव   गुप्तेश्वर    हर    ध्वनि ,  कानन   पड़े  सुनाई //

निकल  पूर्व  से  पश्चिम  हो गईं ,  दुर्गम  जंगल   पार  किया /
दामिनी  सी  लहराती  पथ में , आगे  निज  विस्तार  किया //
महाबाहु    ने   जब    पथ   रोका ,  सहस    धार   भईं   माई /
हर हर -----------------------------------------------------------------// 

चलीं     मंडला    से    आगे  ,  वीरान    वनों   को  सरसाती /
ग्वारीघाट   तटों   पर  सन्तों ,  की   टोली   महिमा   गाती //
महाआरती     धुन       मन     मोहे ,  रेवा     लहर    समाई / 
हर हर ----------------------------------------------------------------//

भिन्न  भिन्न  देवों  के मंदिर , पूजन  क्रम  दिनरात  चले /
दीपदान की सुन्दर छवि लख,हृदय भक्ति की ज्योति जले //
इनके  तट  पर  छटा   प्रकृति   की  अनुपम   देत  दिखाई /
हर हर ---------------------------------------------------------------//

ऋषि  जाबाली   नगर  जबलपुर  बसा   हुआ  है  तीरे  में /
गुप्तेश्वर था  ऋषि   तप  स्थल  ,  गुफा  छिपी  थी  घेरे  में //
करें  रुद्र  अभिषेक   नित्य  जिनमें   शिव  भक्ति  समाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

त्रेता युग में सब ऋषि आश्रम,सिया लखन श्री राम गये /
ध्यान में डूबे मुनि सुतीक्ष्ण के,हिय से अन्तर्ध्यान भये //
मुनि   अकुलाय    उठे   देखा ,  हैं   खड़े   राम   रघुराई /
हर हर -------------------------------------------------------------//

मुनि सुतीक्ष्ण जी से मिलने , जाबालिऋषी आश्रम आये /
प्रभु  दर्शन  की  आशा  में  वे  , आश्रम  में  थे  विलमाये //
सुना  आगमन  हुआ  राम   का , हर्ष   न   ह्रदय   समाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

कर वन्दन अभिनन्दनजब, जाबालि ऋषी ने ध्यान किया /
शोकमग्न  है  नगर अयोध्या , राम बिना, यह जान लिया //
रहे    अयोध्या   राज   सभासद ,  मोह    घटा   घिर   आई /
हर हर ---------------------------------------------------------------//

राम  विष्णु  अवतारी  हैं , इस ओर न ऋषि ने गौर किया /
भरत  आग्रह  मान  अयोध्या , वापस का  प्रस्ताव  दिया //
रानी   केकई  को  समझाने ,  की   धुन  मुनि   मन  आई  /
हर हर ----------------------------------------------------------//

कहा राम ने यह अनुचित  है, मुनिवर  जो  मन  ठानी  है /
भावुकता है मोह की  जननी , आप  महा  मुनि  ज्ञानी  हैं //
यह  सुन  पश्चाताप  हुआ , मुनि  मन  में  ग्लानि  समाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

मायापति  श्री  विष्णु  राम हैं ,  जिनने  मुझे  जगाया  है /
दृश्य  ध्यान  में  देखा है  जो , वह   उनकी   ही  माया  है //
मेरे मन  का तम  हरने , यह  ज्ञान  की  ज्योति  जलाई /
 हर हर ---------------------------------------------------------//

स्थितप्रज्ञ  वही  जिसके  मन , हर्ष  शोक  नहिं आता है /
रहे   ब्रह्म  में लीन  सदा , जग  से   विरक्त   हो   जाता  है //  
 ज्ञान हॄदय में प्रगट  हुआ, गति  मन  की  नहिं  दरशाई /
 हर हर ---------------------------------------------------------//

उद्वेलित  मन  शान्ति हेतु  तप, का  संकल्प हृदय आया /
मुनिसुतीक्ष्ण का आश्रम त्यागा,रेवा तट मन को भाया //
चले   तपस्या  हेतु   महामुनि ,  तपस  लगन  रँग  लाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

ग्वारीघाट   निकट    उत्तर   तट,   ऊँची  एक  पहाड़ी  में /
शिला  के  नीचे  एक  मनोहर ,गुफा  छिपी  थी झाडी में //
रेवा  जल   का   गुप्त   स्रोत  था ,  अति  शीतल  अँवराई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

हरियाली मन  मोह  रही  थी , सीताफल  के  पेड़ सघन /
बेर , करोंदे, बेरी , जामुन  और  मुकुइयों  का   था   वन //
मृगशावक   भर   रहे   कुलाँचें  ,  मन  को  लेत   लुभाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

मन्द सुगन्धित पवन डोलती,पुष्प खिले बहु कुंजन में /
रस   लोभी  भौंरे  गुँजारैं ,  हर्ष  हुआ  ऋषि  के  मन  में //
नाचें  मोर  कूकती  कोयल , शुक  रहे  शिव  गुण  गाई /
 हर हर --------------------------------------------------------//

भिन्न भिन्न स्वर में खग बोलें,कपि किलकत विचरत वन में / 
देख रमा जाबलि ऋषी मन , निकट गुफा के निर्जन में //
तरु  के   नीचे   एक  शिला   पर , बैठे  ध्यान  लगाई ई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

वहाँ राम का  ध्यान गया जब ,विदा हुये सब मुनियों से /
ऋषि जाबाली दिखें  नहीं , पूछा  आश्रम  के  ऋषियों  से //
देखा   ध्यान   लगा   कर   रेवा   तट  पर  दिये   दिखाई /
हर हर ----------------------------------------------------------// 

कुम्भजऋषि के तपस क्षेत्र में, सब ऋषियों से राम मिले /
गुप्त  वास   में   जाबाली   से  मिलने   प्रभु   श्रीराम  चले //
कृपा   दृष्टि   कर  ग्लानि   भक्त  की,  हरन  चले  रघुराई /
हर हर -----------------------------------------------------------//    

शंका  करें न कोई  मन  में , राम व्याप्त  जग  स्वामी  हैं /
रूप   अनेकों   धारण   करते  , वे    हरि   अन्तर्यामी   हैं //
यह   महिमा   प्रभु  की  वे  जाने , जिनने  लगन  लगाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

राम  वही शिव  रूप वही, जो  रूप  भक्त  को  भा जाता /
रूप वही वह प्रगट करे  , जिसमें वह  प्राणी रम जाता //
वह अलख और अद्वैत ब्रह्म ,जिसने यह प्रकृति बनाई है /
हर हर -------------------------------------------------------//

ध्यान में देखा शिव ने प्रभु ,ऋषिवर से मिलने को आये / 
राम  बिना  पद  त्राण  चले , शिव  भी  रेवा तट को धाये //
गुप्त  वास   लख  गुप्त   रहे  शिव, दिये  न   कहीं  दिखाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

शिव  शंकर  रेवा  के  कंकर , बन  पथ  में  बिछ  जाते हैं /
जहाँ   राम   पग   धरते  शिव , स्पर्श  राम   का   पाते  हैं //
धन्य   भाग   जाबाली   जिस   पर,   अनुकम्पा   बरसाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

इसीलिये     रेवा    के    कंकर  ,  शंकर    माने    जाते   हैं /
प्राणप्रतिष्ठा    बिना   प्रतिष्टित,  ये   फल   प्राप्त  कराते हैं //
जिसका   निर्मल   भाव  वही,   यह   जान   रहा  प्रभुताई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

जा   पहुंचे   रेवा   के   तट   जो , ग्वारीघाट   कहा   जाता /
उत्तर   में   है   एक   पहाड़ी ,  दृश्य   मनोहर   मन   भाता //
बिछे   प्रकृति   के   हरे   गलीचे  , शिव   भर   रहे   लुनाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

बढी  शिलाओं   के   नीचे  थी , छाँव  धूप  नहिं  आती  थी /
नीचे   रेवा  स्रोत   गुफा   भी , मनहर   सबसे   न्यारी  थी //
वहीं   निकट   ही   तप   करते ,  जाबाली    दिये   दिखाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

कलरव  करते  पंछी  मानो ,  शिव  जी  के  वे   गुण  गाते /
नाचें   मोर  पपीहे   बोलें  ,  छटा    प्रकृति   की   सरसाते //
रुकजाता    पथ    चलता    राही ,   मोहे    मन    अमराई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

मन   आकर्षित  करें   शिलायें ,  कोयलिया   गाना  गाती /
हर   हर   कहतीं   पीपर   पाती , उन्हें  पवन थी  दुलराती //
राम  को  आते  देख   प्रकृति   ने  ,  अदभुत   छटा   बनाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

लखा  राम  ने  ऋषिवर बैठे  ,  तप   में   ध्यान   लगाये  हैं  /
द्रवित   हुये   श्रीराम   दयानिधि  , दृश्य   देख    हर्षाये   हैं //
शिव   पूजन   के    लिये    निकट   से  ,  रेवा    रेत   उठाई /
हर हर -------------------------------------------------------------//

बालू   से   शिव    लिंग   बनाया  ,  जैसा   है   रामेश्वर   में /
पूजन  करके   किया  स्तवन , शंकर  का  मंगल  स्वर  में //
किया   इष्ट  का   ध्यान   हृदय , अनुराग   धार   बह  आई  /
हर हर -------------------------------------------------------------//
                                  
                  राम द्वारा शिव स्तुति 

कण कण में हो व्याप्त तुम्हीं,है काल आपकी गति शम्भो /
सभी  दिशायें  श्रवण आपके , वरुण  रूप  रसनेन्द्रि  प्रभो //
वेदरूप     ओंकारेश्वर     जग   ,   जाने      नहिं     प्रभुताई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

सूर्य,  अग्नि  अरु  चन्द्र  नेत्र  तव, हे  महेश  शिव त्रिपुरारी /
नभ नाभी अरु वायु श्वास प्रभु , अलख निरञ्जन अविकारी //
प्रगटें    हे   शिव   त्रयम्बकेश्वर  ,  विनय     करत   रघुराई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

      (शिवजी द्वारा प्रकट होकर राम की स्तुति)

राम नयन अभिराम आपको , शिव भी करत  प्रणाम प्रभो /
पद्मनाभ   हे   विशालाक्ष  ,   हे   विश्वरूप   सुखधाम  प्रभो //
इन्द्रि   नियंता    तत्वरूप    नहिं    थाह   किसी   ने  पाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

परमानन्द   स्वरूप   तुम्हीं ,  सर्वात्म   रूप   अन्तर्यामी /
मनस  बुद्धि  के  अधिष्ठान है, नमस्कार  त्रिभुवन स्वामी //
ऐसा    कह    प्रगटे    गुप्तेश्वर,  दामिनी   सी   द्युति   छाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

भेंटे   शिव  श्रीराम  अलौकिक  दृश्य  न  कोई  जान रहा /
गुप्त वास  में  राम  इसीसे,   नहीं   किसी   को   भान रहा //
नाम   हुआ   गुप्तेश्वर   सबको , झलक   न   पडी   दिखाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

शिव, श्रीराम मिलन के क्षण में,जाबाली  का ध्यान हटा /
सम्मुख शिव,श्रीराम को देखा , मन  का पश्चाताप मिटा //
किया प्रणाम राम को ऋषि ने  , हरि  हिय  लिये  लगाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

                   जाबालि ऋषि द्वारा श्री राम स्तुति)

हिय  में  हरि  स्पर्श  मिला ,  दिव्यानंदी  अनुभूति   हुई /
बने   नयन  सावन  के  घन , बुझ गई  तपन संतुष्टि हुई //
पुनि कर जोरि  किया स्तुति , जय जय त्रिभुवन सुरराई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

नील  सरोरुह  श्याम  स्वरूपं , पाणि   मनोहर  चाप धरं /
व्यापक  दिव्य  अनादि  अजं, रघुवंश विभूषण भूप वरं //
दीनानाथ    दया    करके  ,  दो    बुद्धि   विभेद   नशाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//


कलुष निकन्दन भव भयभंजन ,भू आभूषण ज्ञान घनं /
प्रगटे  प्रभु  हरने  भू  भारं , पुरुषोत्तम   अभिमान   हनं //
 त्रिभुवनपति  हो  गया  धन्य  मैं ,आज  दरस तव पाई / 
हर हर --------------------------------------------------------//

मुनि मनरञ्जन  रघुनन्दन हे ,  हृदय  ताप, अज्ञान  हरं / 
शोक  हरं  प्रभु  बोधमयं , जगदादि  दयानिधि  दोष  हरं //
सुर  काज   हेत   प्रगटे   भुवि  में , मायामय   रूप  बनाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

जगत  गुँथा   तुममें   ऐसे , ज्यों   सूत्र   पिरोई   मणि  माला /
दीप्तिवान  कण  कण  तुमसे, हो सृष्टि विनाशक तुम ज्वाला //
कर    वन्दन  अभिनन्दन ,  निर्मल   भक्ति   राम   की   पाई /
हर हर ---------------------------------------------------------------//

             (जबालि  ऋषि द्वारा शिव जी की स्तुति )

स्तुति कर भगवान राम की  , शिव  को  दण्डप्रणाम किया /
करने  मम  कल्याण  सदाशिव , दरश  राम  के  संग दिया //
धन्य    आज   मैं   हुआ    प्रभो  ,  जो   कृपा   आपकी   पाई /
हर हर --------------------------------------------------------------//

आप   यहाँ   प्रत्यक्ष   हुये ,  श्रीराम   समागम   के   कारण /
जन्म मृत्यु रुज वैद्य तुम्हीं  हो , तुम  करते   भव  उद्धारण //
शरण   आपकी   आया   हूँ  ,  दो   हरि   में   विलय   कराई /
हर हर ------------------------------------------------------------ //

                     ( शिवजी द्वारा आशीष)

जाबालि  तुम्हारे  कारण  ही , श्रीराम  यहाँ  चलकर आये /
जो भक्त राम की भक्ति करे , वह सबसे अधिक मुझे  भाये //
यह कह ऋषि तप सफल किया ,यशकीर्ति ध्वजा फहराई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

गुप्तेश्वर   में  आकर   जो   श्री राम  ,  कृष्ण   गुण   गायेंगे /
कथा  भागवत  का  अमृत  रस , मुझको   पान   करायेंगे //
वे    पायेगे    हरि   अनुकम्पा   ,  मैं     भी    करूँ    सहाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//


भक्त   तपस्या   करते  हैं  जो ,  रेवा   के  तट  पर  आकर /
सदगुरु  बन  मैं  राह  दिखाऊँ , मिलवाऊँ  प्रभु से जाकर //
मुक्ति    जगत   से    वे     पा   जाते  ,  दूँ   संयोग   बनाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

          (श्रीराम जी द्वारा जाबालि ऋषि को आशीष)

कहा    राम    ने   यह   तपस्थल,   गुप्तेश्वर   कहलायेगा /
ऋषि जाबाली  पुरम  नाम,  विख्यात  नगर हो जायेगा //
सिद्धि   बढ़ेगी   कलयुग   में   शिव,धाम   बने   सुखदाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

कुछ कालान्तर  बाद गुफा यह ,मिट्टी से  ढँक  जायेगी /
कलियुग में फिर यही गुफा ,शिव अनुकम्पा बरसायेगी //
यह  सुन   हर्षित  हुये  महामुनि ,  भक्ति   और   गहराई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

परम्परा  अनुसार शिष्य  को, सिद्धि  प्रभेद  बता  जाना /
बनती  जाये  राह  स्वयं  ही , ऐसी  ज्योति  जला जाना //
यह कह अन्तर्ध्यान हुये हरि ,  हर  ऋषि  लगन  बढ़ाई /
हर हर --------------------------------------------------------//

शिवजी को ऋषिवर के कारण , रामचन्द्र सानिध्य मिला /
रहे यहाँ कुछकाल और प्रभु,राम हॄदय शिव  कमल खिला //
 इक   दूजे   के    इष्ट    हरि,  हर ,  बुद्धि  थाह  नहिं  पाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

परम वैष्णव साम्बसदा शिव, हिम  गिरि  के जामाता हैं /
सत्यलोक   वे    प्राप्त    कराते ,  तारक    मंत्र   प्रदाता  हैं //
राम , कृष्ण  दुर्गादि  महोत्सव ,  में   द्युति   दें   झलकाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

भिन्न  भिन्न श्रृंगार मनोहर, शिव  के  सजते सावन में /
काँवर ,पुष्प चढ़ें  घन  बरसें, रिमझिम  बेला  पावन  में //
भक्त  करें  अभिषेक  भक्ति   नहिं , हिय  में  रही  समाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

जब आती शिवरात्रि ,भक्तगण शिव पूजन अर्चन करते /
शिव  भक्ती  से  ओत  प्रोत , शिव  भजनों  में डूबे  रहते //
पूर्ण     कामना   करें   सदाशिव ,  कृपा   दृष्टि   बरसाई /
हर हर --------------------------------------------------------//

ओंकारमय   हो   जाता ,  शिवरात्रि    पर्व   में   गुप्तेश्वर /
महा महेश्वर  , अदित्येश्वर   महाकाल   जय  भुवनेश्वर //
हर  हर  मातु  ,नर्मदे  ,हर  सब , बोलें , ध्वज  ,लहराई /
हर हर --------------------------------------------------------//

करें  साधना  गुप्तेश्वर  की , अनुकम्पा  शिव  की  पायें /
हो  जातीं  सब  पूर्ण  कामना , भक्त  उन्हीं में रम जाये //
मधुकर   शिव   गुप्तेश्वर   देते ,  भव   से    पार   कराई /
हर हर --------------------------------------------------------//

                                     उदयभानु तिवारी ''मधुकर'' 

  

Monday, 29 August 2016

        


        महारानी दुर्गावती

सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //

देवीदुर्गाअष्टमी    को   रण   रागिनि    जग   में  आई
निकट महोबा राठ गाँव  में, प्रथम झलक दी दिखलाई
पन्द्रह   सौ   चौबीस , पाँच   अक्टूवर   शुभ   बेला   पाई
चंदेलों  में कीरतसिंह  गृह , कन्या  हर्ष   लहर  लाई
नवदुर्गा  में  जन्मी   गाथाहै  उस  रण दीवानी की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //१//

दुर्गावती  नाम रख   विधिवत , कर स्वागत  उपहारों  से
पिता ने पाला,बचपन से थी,लगन विविध हथियारों से
रण में  था  अनुराग  वे  खेला , करतीं   थीं   तलवारों   से
प्रतिद्वन्द्वी घायल  हो जाते , उनके  तीव्र   प्रहारों   से
शस्त्र  कवच आभूषित उनकी  छवि दिखती मर्दानी की   
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //२//
दुर्गा  जैसा  शौर्य , बुद्धि बल , था  सौन्दर्य  खजाने  में
गईं  शिकार  खेलने ,  मनियागढ़  के  वन  वीराने   में
दलपतशाह    रहे  कुलदीपक   गौंडी     राजघराने   में
दोनों   थे   हमउम्र , शिकारी    मन  रीझा  अनजाने  में
मन ही मन कर लिया वरण,ढल गई उमर  नादानी की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //३//

पिता को  था स्वीकार  नहीं संबंध  गौंड  परिवारों में
अस्वीकार कर  दिया उलझ गईं दुर्गा गहन विचारों में
घोषित  हुआ स्वयंवर  भेजे   पत्र  राज दरबारों  में
शीघ्र   करें   अपहरण , प्रार्थना  की  तब  पत्राचारों   में
पुनरावृत्ति   हुई  संयोगिता  पृथ्वीराज   कहानी की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //४//

सँग में लाये व्याह रचाया , फिर अपनी   रजधानी  में
संग्रामशाह  ने  लुटवाईं , मुहरें  वधु  की  अगवानी में
कुशल शासिका, श्रेष्ठ नारियों  के गुण थे कल्याणी  में
दलपतशाह की  रानी बनकर बसीं प्रजा की  वाणी  में
आठ   वर्ष   ही  बीते  रेखा ,  बदल  गईं  पेशानी  की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //५//

राजा  दलपतशाहि   से  बिछुड़ीं ,  रानी   भरी  जवानी  में
कन्धों पर था भार प्रजा का ,मन सुत की निगरानी में
जलसाधन  बढ़वाये  उगले  धरा स्वर्ण , मिल  पानी  में
ईश्वर   में  थी   निष्ठा   रहतीं , संतों   की  यजमानी  में
शिष्या थीं वे स्वामी नरहरि दास,  महा गुरु ज्ञानी  की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //६//
जब   संकट   आता   गुरु   आज्ञा   थी  वे   गुप्तेश्वर  जातीं
ध्यान   लगा   दूरस्थ   गुरू  को,  सन्देशा   वे   भिजवातीं
माला  देवी   और  शारदा  माँ    के   दर्शन   को  आतीं
कथा  भागवत  सुनतीं  रानी,  जनता के  मन को भातीं
सारी   प्रजा   प्रसंशा   करती , नारी   निरअभिमानी  की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //७//

श्री महेश  ठाकुर , रघुनन्दन राय,  पुरोहित  ज्ञानी  थे
स्वामी विट्ठलनाथ संत में  श्रेष्ठब्रह्म  के  ध्यानी  थे
भोजसिंह  कायस्थ  कोष  के   रक्षक    सेनानी  थे
मान विप्र   व  मियाँबुखारी  ,  राजनीति  संज्ञानी  थे
हुई शासिका और     कोईदुर्गावती   की  सानी  की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश,भवानी ,की //८//

मुद्राओं में  स्वर्ण और चाँदी के   सिक्के  चलते थे
स्वागत में रानी को  हाथी  भेंट रूप में  मिलते थे
सब धर्मों के अनुयायी सदभाव  प्रेम  में   पलते  थे
देख  देख रानी  का  वैभव, दुश्मन राजे जलते  थे
रौद्र रूप  में दिखती  थी  रण में सेना  रुद्राणी की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश ,भवानी,की //९//

सिंगौर, मंडला,गढ़ा, महोबा,छत्तिसगढ़ औ सिलवानी
बावन गढ़  थे गौंड राज्य के, जहाँ थे  उनके  सेनानी
रानी रहीं  उदार ,न्याय प्रिय, भावुक  और  महादानी
प्रजा  सुखी सम्पन्न    तत्पर  रहती  देने  कुर्वानी
दिल्ली पहुँची ख्याति साहसी गौंड वंश क्षत्राणी की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी,दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश,भवानी,की //१०//

बाज़बहादुर  लड़ने  आयारण   की  बड़ी  तयारी  थी
किये  अनेक  युद्ध   सब  हारे , वह  देवी  अवतारी थी
शरमन  नाम  श्वेत हाथी, रानी  की  श्रेष्ठ  सवारी थी
रणमंत्री  आधारसिंह  की, उनमें  निष्ठा   भारी  थी
रणरंगी  अनुरागी   सैनिक थे  सेना  में रानी की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी,दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश,भवानी ,की //११//

बाज़बहादुर बादशाह  की   शरण गया  जब रण हारा
उसके चाचा  को  रानी   ने  घेर  लिया  रण  में  मारा
अकबर ने  भेजी निज  सेना गज,घोड़े,दल बल सारा
शरमन  गज,  आधारसिंह को  मागा  भेजा हरकारा
ठुकरादीं   रानी  ने  अकबर  की  मागें  शैतानी   की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //१२//

सिंगौर क़िले में अकबर  की  बारह सहस्त्र  सेना आई
किले के मुख्य द्वार  को  तोपों से कर दिया  धरासाई
गुप्त   द्वार  से   रानी  निकली   मुगलों के  पीछे   धाई
हुआ   भयंकर  युद्ध,   देख  आसफ़   की   सेना  थर्राई
तोप से बचतीं धावा करतीं वन  की  ओर  रवानी की  
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश,भवानी ,की ////१३//

चांडालभाटा  में  छेड़ा  युद्ध  पलट  कर   फिर  धाई
दूर खदेड़ दिया मुगलों को  तोप  नहीं  तब तक आई
बढी  सैन्य की शक्ति गढ़ा  की  सेना  ने  की  भरपाई
तोप   के  कारण  रानी  को   मैदानी   जंग   नहीं   भाई
छापामारी  युद्ध   नीति   ही   लगती  थी  आसानी   की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश ,भवानी,की ////१४//

                               आहत   असफ़ख़ाँ    फिर   आया   करके   पूरी   तैयारी
तोप   और   बारूद  बिना  थी   रानी   की  सेना  सारी
उतरे  योद्धा   समर   भूमि   में  भरी  युद्ध  की  हुंकारी
वीरनारायण  रानी  के   थे  पुत्र   पराक्रम   था  भारी
गज पर बैठ सिंहनी  रानी  ने रण  की  अगवानी की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी,दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश,भवानी ,की ////१५//

बग्घराज औ  बच्छराज  सेना नायक  भुजबल  धारी
दुल्हासिंह   थे    बाहुबली   रणरंगी   सेना  अधिकारी
छिड़ा  युद्ध चमकीं तलवारें  चलीं रक्त  की  पिचकारी
कट कट गिरने लगे मुण्ड थीं रानी मुगलों पर भारी
प्रकट हुई मानो रणचण्डी थी वह शक्ति शिवानी की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //१६//

आसफ़ख़ाँ    के   छक्के   छूटे   तारे   दिखें   उजाले   में
छोड़  भगे  मैदान  जीत   थी  अब   रानी  के  पाले  में
विजयसमझ सेनाउल्लासित मुग़लछिपे अँधियाले में
तब  तक  आई  बाढ़   घिरीं  महारानी  नर्रई  नाले  में
घोर रात्रि  में घेरो   दुश्मन   मन्शा  थी   ये  रानी  की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की ////१७//

पानी    था   नाले   में   गहरा   सेना   नहीं   उतर  पाई
भोर  हुआ  मुग़लों  की   सेना  तोपें  लेकर  चढ़  आई
आखिर वही हुआ जिसकी चिंता रानी के मन छाई
वीरनारायण    सेनानी  ने  की   सेना   की  अगवाई
औचक  चढ़ आया दुश्मन  थी बात बड़ी हैरानी  की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //१८//

बारह  सहस शत्रु  की सेना रानी  की थी  पाँचहज़ार
एक वीर योद्धा रानी का दस दुश्मन पर करे  प्रहार
जैसे  बाज़ झपट्टा  मारे करने   लगे   वार   पर   वार
सेनापतिझपटे  दुश्मनपर  मचगई दल में  हाहाकार
झपटीसिंहनी  आसफ़ख़ाँ  पर तबसमझा  नादानीकी
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //१९//

हाथी  घोड़े   पैदल   जूझे , जूझे   मुग़लों  के   सरदार
शरमन हाथी जब चिंघाड़े दुश्मन छोड़ भगें हथियार
भगदड़ मची मुग़ल सेना में, आया तोपों का भण्डार
चलीं तोप बिदके  हाथी रानी के कुचल गये  असवार
जीत हार  में बदल  गई  अब , गौंड   राजपूतानी  की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी , दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //२०//

बढ़ने  दिया      नाले   ने , आये  मुग़लों   सेनानी
एक तीर धँस गया कान के पास हुईं घायल  रानी
लगा दूसरा तीर गले निज सैनिक ने की बेईमानी
होने लगीं   अचेत,  कटारी   मार स्वयं   दी   कुर्वानी
चौबीसजून पन्द्रहसौचौंसठ अन्तिमतिथि बलिदानीकी
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश,भवानी,की //२१//

हाथी ने रानी वियोग में अन्न और  जल  छोड़  दिया
स्वामिभक्त था उसने नश्वर तन से नाता  तोड़  लिया
स्वर्गारोहण  में  रानी  के  संग  स्वयं  को  जोड़   लिया
रानी के जाते ही   वैभव  ने  अपना   मुख  मोड़  लिया
गौंड राज्य का हुआ   पराभव यादें  रह  गईं  रानी की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश ,भवानी ,की //२२//

मिलीज्योति से ज्योति,ज्योतिवह माँदुर्गासे आई थी
श्रेष्ठ  राज्य स्थापित करके  जन मानस में छाई थी
अपने बावन गढ़ तक उसने धर्म  ध्वजा  फहराई  थी
मान  प्रतिष्ठा  की रक्षा  में  अपनी जान गवाँई थी
जनमानस में बसी रहेगी , स्मृति  शौर्य   कहानी  की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //२३//

जब तक है  धरती ''मधुकर'' यशगान तुम्हारा गायेंगे
चौबीस जून को नित्य तुम्हारा स्मृति दिवस मनायेंगे
श्रद्धा सुमन समर्पित कर सब तुमको  शीश  झुकायेंगे
तेरे   आदर्शों  की   जग  में   कीर्ति  ध्वजा लहरायेंगे
संस्कारधानी   करती  है  रक्षा अमर निशानी  की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //2//


                                  उदयभानु तिवारी ''मधुकर''