प्राण दीप तुम जलते रहना
दुःख की रात गुजर जायेगी ,प्राण दीप तुम जलते रहना//
शीतल मंद सुंगध पवन है
पग पग पर सुन्दर उपवन है
नये नये रंगीन सवेरे
मृगतृष्णा से भरी तपन है
ये सारी दुनिया उलझन है,इस उलझन से बचते रहना/
दुःख की रात -----------------------------------------//१//
स्वारथ ने संबंध बनाये
आशायें हैं इन्हे टिकाये
वृहद कल्पना के सागर में
तुमने गोते खूब लगाये
प्रेम के प्यासे परवाने तुम ,प्रेम अग्नि में पलते रहना/
दुःख की रात ---------------------------------------//२//
फैल गया मायावी कोहरा
द्वार द्वार पर तम का पहरा
अपने सारे हुये पराये
घाव ह्रदय में करके गहरा
तुम विरहा के गीत बनाकर विरह व्यथा निज सहते रहना/
दुःख की रात --------------------------------------------//३//
बात न पूछी उजियारों ने
बढ़ने दिया न मीनारों ने
नफ़रत के साये में छिप कर
घात लगाई अँधियारों ने
निज विवेक औ बुद्धि जगाकर पथ आलोकित करते रहना/
दुःख की रात ------------------------------------------ //४//
हुये अस्त रवि भय मत करना
दीप्तवान पथ पर बढ़ चलना
भावों की सरिता में बहकर
मन रे भूल फिसल मत पड़ना
तनतुलसी चौरे पर स्थित सुधियों संग मचलते रहना /
दुःख की रात -----------------------------------------//५//
प्रेम का ताग पतंग से टूटा
कटी पतंग पवन था रूठा
फिर नहिं हाथ लगेगी प्रियवर
सच है नात जगत का झूठा
रे मधुकर नभ के अंचल में निज मंजिल तक चलते रहना/
दुःख की रात --------------------------------------------//६//
उदयभानु तिवारी "मधुकर"
उदयभानु तिवारी "मधुकर"