Tuesday, 6 December 2011

जिसके मन आसक्ति समाये

               जिसके मन आसक्ति समाये /
               वैभव  बाग़   देख    बौराये //

सुफल कुफल दो फल बगिया में ,फलें कर्म जल  सींचे /
शुभ फल लगें नित्य जो निज धन कर सत्कर्म उलीचे //
लगें अशुभ फल छल -बल से जब मन दूषित हो  जाये /
जिसके ------------------------------------------------------//१//

नीति पंथ प्रिय तिन्हें न लागे धन की बढ़े पिपासा /
अहंकार के  अन्धकार  में  दिखे  न ज्ञान प्रकाशा//
हो मदान्ध  उत्तम  पद  पाये  और और  ललचाये /
जिसके -----------------------------------------------//२//

क्रूर कर्म कर परधन  छीने  सबको  तरस दिखाये /
दीन,हीन,निर्धन ,निर्बल पर दया  भाव नहिं आये //
"मधुकर"वैभव मद के रस में माखी सा गड जाये /
जिसके -----------------------------------------------//३//  

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