गायेजा रे गायेजा हे मनुवाँ हरिगुण गाये जा /
पलक पांवड़े पंथ बिछाये प्रेम के अश्रु बहायेजा //
तन के सँग निज को कर निर्मल हो पावन ज्यों गंगाजल /
त्याग द्वेष,अभिमान,कपट छल चिंतन कर प्रभु का हर पल //
मनमोहक दिव्यकृति के दर्शन में ध्यान लगायेजा /
गायेजा रे गायेजा ----------------------------------------------//१//
जितना प्रभु की ओर बढोगे तुम सत के पथ पर चलकर /
तुमसे दूना प्रभु बढ़ आते देख सके न कोई नजर //
प्रेम के प्यासे प्रेमसिन्धु को पुष्पपराग पिलायेजा /
गायेजा रे गायेजा -------------------------------------------//२//
तेरे ह्रदय कमल में प्रभु हैं क्यों भटके मंदिर मंदिर /
ध्यान लगा छवि दर्शन कर है ऋतु बसंत तेरे अन्दर //
"मधुकर"प्रेम अमिय रस पी ,कुछ वाणी से छलकायेजा /
गायेजा रे गायेजा ------------------------------------------//३//
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