जब हरिमाया प्रेरे साधो जब हरि माया प्रेरे हो
जब हरिमाया प्रेरे साधो जब हरि माया प्रेरे हो /
तब माया आसक्त जीव नहिं सुने आत्मा टेरे हो //
फिर मति धर्म अधर्म न जाने ,अहं बुद्धि को फेरे हो /
जब ------------------------------------------------------//१//
तज सत्संग कुसंगति पाये बुद्धि भ्रमित हो जाये /
मिटे विवेक शक्ति उस मन की ज्ञान पंथ नहिं भाये //
हरि से विमुख हुये हो जायें नित्य काम के चेरे हो /
जब -----------------------------------------------------//२//
भोग लालसा में मन जाये जहँ दुख ही दुख पाये /
सूरा,सुन्दरी में फँस कर निज,तन,धन शांति गवाँये //
हो अशक्त जब दुख में डूबे तब हरि हरि कह टेरे हो /
जब ------------------------------------------------------//३//
कृपादृष्टि से तब हरि हेरें सब अज्ञान नशाये /
देख ज्ञान की ज्योति शलभ मन कभी तृप्ति नहिं पाये //
"मधुकर" होय विरक्ति उसे फिर मोहासक्ति न घेरे हो /
जब ---------------------------------------------------------//४//
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