हे शिरडी साईं दया निधे मधुकर मन को छवि दिखलाओ /
प्रभु करूँ सदा गुणगान ह्रदय में ऐसा रस प्रभु बरसाओ //
मैं सुन कर महिमा स्वजनों से
अनुकम्पा पाने आया हूँ
दाता के सम्मुख याचक बन
कुछ शब्द सुमन चुन लाया हूँ
दे शरण मुझे निज चरणों में प्रभु प्रेम पियूष पिला जाओ /
हे सिरडी साईं ----------------------------------------- //१//
हे बाबा नतमस्तक होकर
यह सेवक शीश झुकाता है
जीवन सुखमय ही रहे नित्य
प्रभु से बस यही मनाता है
मन संग चले परछाईं बन सदगुरु सद्ज्ञान सिखा जाओ /
हे सिरडी साईं ----------------------------------------//२//
हम भटक गये मग माया में
मन मोहक विषयक छाया में
जब मोहनिशा बीती आया
दुख दर्द समेटे काया में
हे कष्ट हरण बन सुमन भृंग की प्यास बुझाने आ जाओ /
हे सिरडी साईं -----------------------------------------//३//
प्रभु मैंने तुमसे जो पाया
कुछ अंश भेंट में लाया हूँ
भंडारे में अर्पण करके
संतुष्टि ह्रदय में पाया हूँ
हे बाबा श्रद्धा का रूखा सूखा भोजन आकर पाओ /
हे सिरडी साईं ----------------------------------//४//
इतना दो साईंराम मुझे
कुछ दान धर्म होता जाये
कर्तव्य कर्म में चित्त लगे
उपकार सदा मन को भाये
हों सारे भव रुज दूर यही प्रभु माँग रहा देकर जाओ /
हे सिरडी साईं -----------------------------------//५//
दो ज्योति किरण फणि मणि जैसी
जिससे अंत:तम मिट जाये
मन हो विरक्त नहिं अहं रहे
माया आसक्त न कर पाये
हे बाबा याचक "मधुकर'पर कर कृपादृष्टि वर दे जाओ /
हे सिरडी साईं---------------------------------------//६//
डॉ उदयभानु तिवारी "मधुकर"
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