भगवान् महावीर
महावीर भव भय भंजन ,हे दिव्य कांतिमय मूर्ति ललाम /
ज्ञान सिन्धु हे विश्व इन्दु नत मस्तक हो प्रभु करूँ प्रणाम //
अजर अमर हे अविनाशी प्रभु
योगी, साधक ,कैलाशी
सब के हिय में विचरण करते
देख रहीं आँखें प्यासी
मोह प्रभंजन सुर मुनि रंजन योगेश्वर सम मन अभिराम /
ज्ञान सिन्धु------------------------------------------------//१//
जिन मुमुक्षु मन में जिज्ञासा
निज आत्मा में रस पायें
देकर ज्ञानप्रकाश उन्हें प्रभु
ध्यान योग में ले जायें
कलुष निकंदन मानस चन्दन सदगुरु तुम्हीं मनोहर श्याम /
ज्ञान सिन्धु ----------------------------------------------//२//
असन बसन तन की सुधि भूले
डूबे ज्ञान समाधी में
हो वह स्थिरचित्त न डोले
ऐन्द्रिक विषयक आँधी में
प्रभु पद- पंकज का कर वन्दन ध्यान करे जो आठों याम /
ज्ञान सिन्धु -------------------------------------------//३//
ॐ नाद अन्त: में गूँजे
निर्विकार मन हो जाये
जगत व्याप्त परमेश्वर की छवि
दर्शन का अनुभव पाये
वह वैरागी जब तन त्यागे पाये मधुकर प्रभु का धाम /
ज्ञान सिन्धु ----------------------------------------//४//
उदय भानु तिवारी "मधुकर"
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