स्थिर न एक ठिकाना हरि के बिना /
जीव सहे दुख नाना ,हरि के बिना //
पांच तत्त्व का ये तन पिंजरा /
जन नहिं जाने राज ये गहरा //
जीव रहे अनजाना हरि के बिना /
स्थिर न एक ------------------//१//
नौ द्वारी इस नश्वर तन में
दशौ इन्द्रियाँ अरु मन जिन में
हो आसक्त भुलाना हरि के बिना /
स्थिर न एक -----------------//२//
कामासक्ति, क्रोध, मद, मत्सर /
मोहपास बंधन में बंध कर //
जीव सहे दुख नाना हरि के बिना /
स्थिर न एक -------------------//३//
जब यह मन हरि में अनुरागे
तज आसक्ति मोह से जागे
तब हो ह्रदय बिहाना, हरि के बिना
स्थिर न एक -------------------//४//
जीव कृपा जो हरि की पाये /
प्रभु की भक्ति में वह रम जाये //
मिटे जगत में आना ,हरि के बिना /
स्थिर न एक -------------------//५//
समन हुईं जिनकी इच्छायें /
"मधुकर" परम सिद्धि नर पायें //
यह संसार विराना ,हरि के बिना /
स्थिर न एक -----------------//६//
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