Saturday, 10 December 2011

स्थिर न एक ठिकाना हरि के बिना

स्थिर न एक ठिकाना  हरि के बिना /
जीव सहे दुख नाना ,हरि के बिना //

पांच  तत्त्व  का  ये  तन   पिंजरा / 
जन  नहिं  जाने  राज  ये गहरा //
जीव रहे अनजाना हरि के बिना /
स्थिर न एक ------------------//१//

नौ   द्वारी   इस   नश्वर   तन  में 
दशौ इन्द्रियाँ अरु मन  जिन  में 
हो आसक्त भुलाना हरि के बिना /
स्थिर न एक -----------------//२//

कामासक्ति,  क्रोध, मद,   मत्सर /
मोहपास   बंधन   में   बंध   कर //
जीव सहे दुख नाना हरि के बिना /
स्थिर न एक -------------------//३// 

जब   यह   मन   हरि  में अनुरागे 
तज   आसक्ति   मोह    से    जागे 
तब हो ह्रदय बिहाना, हरि के बिना 
स्थिर न एक -------------------//४//

जीव  कृपा   जो   हरि   की   पाये /
प्रभु  की  भक्ति  में  वह  रम  जाये //
मिटे जगत में आना ,हरि के बिना /
स्थिर न एक -------------------//५//

समन   हुईं   जिनकी   इच्छायें /
"मधुकर"  परम  सिद्धि नर पायें //
यह संसार विराना ,हरि के बिना /
स्थिर न एक -----------------//६//

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