Tuesday, 6 December 2011

साधो जीवन बहता पानी

 साधो जीवन बहता पानी /
निश्छल निर्मल कल कल ध्वनि में,रमे ब्रह्म के ध्यानी /

बूँद सिन्धु से जब  मिल  जाये  वह  सागर  कहलाये /
लहरें   बन  कर  लेत  हिलोरें   थाह   न  कोई  पाये //
विलग  सिन्धु  से  हुआ  द्वेत गति पाये आणि जानी /
साधो -----------------------------------------------------//१//

निर्मल  सलिल  बूँद  बन  निकले  स्रोत  करे  अगवानी /
पल पल छिन छिन बहता जाये निश्छल रहित अमानी //
गंगा  सी  पवन  जलधारा  सौम्य , सुखद , रसखानी /
साधो --------------------------------------------------------//२//

माया के घन जब झुक  बरसें  हो  ढाबर  फिर  पानी /
निज  सीमायें  लाँघ  चले   ठगनी  माया   लपटानी //
होकर छुद्र ,वक्र  गति  पाये छलके अति अभिमानी /
साधो -----------------------------------------------------//३//

चलते चलते जब सरिता की अगम धार पा जाये /
मिटे अहं हो शांत सरित में जब  सम्पूर्ण  समाये //
"मधुकर"गूढ़ भेद जो जाने हो  जाये  वह  ज्ञानी /
साधो ------------------------------------------------//४//

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