नर तन मिला भजन कर बन्दे
नर तन मिला भजन कर बन्दे फिर अवसर नहिं आयेगा /
माया मृगतृष्णा में पगले ,जन्म व्यर्थ हो जाएगा //
ठगनी माया मन भर माये लोभवृत्ति आसक्ति जगे /
मोह तिमिर मन में छाजाये सत्य और ईमान डिगे //
हरि से विमुख हुआ दुख सागर में डूबे उतरायेगा /
माया मृगतृष्णा -------------------------------------------//१//
होजाये वह दम्भी जिस जिस के घर में माया आये /
जिस पर हो अनुकम्पा हरि की वही अहम् से बच पाये //
रोग , व्याधियों से तेरा यह मन अस्थिर हो जायेगा //
माया मृग तृष्णा -----------------------------------------//२//
कौन सुखी माया नगरी में किसने क्या सुख़ पाया है /
सुख़ की चाहत में जो दौड़ा दु;ख़ भाग में आया है //
धन दौलत कुछ काम न आये जब अशक्त हो जायेगा /
माया मृगतृष्णा --------------------------------------- //३//
मीठी वाणी बोलो ऐसी क्रोध पिघल कर बह जाये /
तुम भी शीतल रहो और का मन भी शीतलता पाये //
जग में जो सत्कर्म करे उनका फल ही सँग जायेगा /
माया मृगतृष्णा ---------------------------------------//४//
पिछले जन्मों के कर्मों का सुफल कुफल तुमने पाया /
फिर संयोग बनेगा आगे कर्मों ने जो लिखवाया //
मधुकर दान धर्म की पूँजी ही सँग में ले जायेगा /
माया मृगतृष्णा ---------------------------------------//5//
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