Tuesday, 6 December 2011

यह जग पीपल तरुवर न्यारा

यह जग पीपल तरुवर न्यारा

यह जग पीपल तरुवर न्यारा 
है अम्बर में जड़ इस तरु   की  परमब्रह्म आधारा //

सर्व   लोक   शाखायें  तरु की जो  ब्रह्मांड  कहावे /
ऊपर नीचे चहुँ दिशि फैलीं जहँ नर पहुँच न पावे ///
योनि रूप सब प्रति शाखायें  माया  है अँधियारा / 
यह जग ----------------------------------------------//१//

वेद  रूप  पत्ते   तरुवर   के   ज्ञानामृत   बरसायें /
स्वर्गाकांक्षी पुरुषों को ये विधि विधान समझायें //
कर सत्कर्म पुरुष जहं जाते देव लोक वह प्यारा /
यह जग --------------------------------------------//२//

प्रानिरूप फल लगे धरा पर जिसको ज्ञानी जाने /
माया से आसक्त जगत यह बिरले  ही  पहचाने //
मोह - पाँश में बँधे जीव सब कर्मन के आधारा /
यह जग ------------------------------------------ //३//

यहीं स्वर्ग-सुख़ नरक यातना मिश्रित फल नरपावे /
तज आशक्ति विलग हो तरु से वह योगी  कहलावे //
पावे  निर्गुणब्रह्म  परमसुख  मिले  ज्ञान उजियारा /
यह जग ---------------------------------------------//४//

पग  पग  पर  इस  भू  मंडल  पर  हरि माया मति फेरे /
कृपा-दृष्टि   कर   प्रभु  जब  हेरें फिर  माया  नहिं   घेरे //
"मधुकर" भज नित परमब्रह्म जो निगुण विश्वकरतारा /
यह जग ----------------------------------------------------//५//       

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