यह जग पीपल तरुवर न्यारा
यह जग पीपल तरुवर न्यारा
है अम्बर में जड़ इस तरु की परमब्रह्म आधारा //
सर्व लोक शाखायें तरु की जो ब्रह्मांड कहावे /
ऊपर नीचे चहुँ दिशि फैलीं जहँ नर पहुँच न पावे ///
योनि रूप सब प्रति शाखायें माया है अँधियारा /
यह जग ----------------------------------------------//१//
वेद रूप पत्ते तरुवर के ज्ञानामृत बरसायें /
स्वर्गाकांक्षी पुरुषों को ये विधि विधान समझायें //
कर सत्कर्म पुरुष जहं जाते देव लोक वह प्यारा /
यह जग --------------------------------------------//२//
प्रानिरूप फल लगे धरा पर जिसको ज्ञानी जाने /
माया से आसक्त जगत यह बिरले ही पहचाने //
मोह - पाँश में बँधे जीव सब कर्मन के आधारा /
यह जग ------------------------------------------ //३//
यहीं स्वर्ग-सुख़ नरक यातना मिश्रित फल नरपावे /
तज आशक्ति विलग हो तरु से वह योगी कहलावे //
पावे निर्गुणब्रह्म परमसुख मिले ज्ञान उजियारा /
यह जग ---------------------------------------------//४//
पग पग पर इस भू मंडल पर हरि माया मति फेरे /
कृपा-दृष्टि कर प्रभु जब हेरें फिर माया नहिं घेरे //
"मधुकर" भज नित परमब्रह्म जो निगुण विश्वकरतारा /
यह जग ----------------------------------------------------//५//
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