रे मन चलो ब्रह्म के देश
रे मन चलो ब्रह्म के देश /
तन में व्यापे व्याधि , बुढ़ापा ,यहाँ क्लेश ही क्लेश //
माया मोह जाल में फँसकर जीव मुक्ति नहिं पाये /
मृगतृष्णा में भटक भटक कर प्यासा ही मरजाये //
बीती मोह निशा हिय गूँजा यह अनहद सन्देश /
रे मन ---------------------------------------------//१//
ईर्षा ,द्वेष , द्वंद्व से सारा जग अशांत है भारी /
दैहिक ,दैविक, भौतिक तापों तपे सृष्टि यह सारी //
चन्द दिनों की मेहमानी कर तज अब यह परदेश /
रे मन ---------------------------------------------//२//
परम धाम के उस मालिक की करिये ऐसी भक्ति /
मिटे जगत में आना जाना मिले कर्म से मुक्ति //
सुन गीता ज्ञानामृत वाणी परम ब्रह्म उपदेश /
रे मन ------------------------------------------//३//
करे ध्यान में निज आत्मा का परमात्मा से योग /
तभी बने उस परमधाम को पाने का संयोग //
तज आसक्ति भजे जब "मधुकर"प्रभुपुर मिले प्रवेश /
रे मन ----------------------------------------------//४//
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