कर्म किये जा फल में तेरा है अधिकार नहीं प्राणी
कर्म किये जा फल में तेरा है अधिकार नहीं प्राणी /
कर्मों का फल मैं देता हूँ ऐसी सदगुरु की वाणी //
कर्म न करने में भी अर्जुन इस तन का उद्धार नहीं /
कर्म यज्ञ कर सब फल तज कर मन चाहे प्रतिकार नहीं //
तो प्रति फल में मैं मिलजाऊं ,करना मेरी अगवानी /
कर्म -----------------------------------------------------//१//
सर्व कर्म फल मुझे समर्पित कर देते जो नर ज्ञानी/
उन मुमुक्षु की रक्षा करता हूँ नहि जाने अज्ञानी //
हे अर्जुन माया में मेरी सब की मति है भरमानी /
कर्म ----------------------------------------------------//२//
मैं निर्गुण हूँ किन्तु भक्ति में सगुण रूप निज प्रगटाता /
सदगुरु बनकर मार्ग दिखाऊँ पार्थ शरण जो आ जाता //
"मधुकर" वे भव सिन्धु उतारें गीता है जिनकी वाणी /
कर्म -----------------------------------------------------//३//
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