नर जब करे कर्म फल त्याग
नर जब करे कर्म फल त्याग /
प्रभु में उपजे दृढ़ अनुराग //
ज्यों ज्यों हरि चितन में डूबे चित स्थिरता पाये /
क्रमश; धीरे- धीरे मन की सब आसक्ति नशाये //
मिटे मोह की रात्रि जले तब हिय में ज्ञान चिराग /
नर जब ------------------------------------------//१//
काम ,क्रोध ,मद ,लोभ ,मोह ,मत्सर हैं देह विकार /
फलासक्ति मन को भरमाये दीजै इन्हें बिसार //
आत्म शुद्धि होते ही हिय में उपजे पूर्ण विराग /
नर जब ---------------------------------------------//२//
मिटे अशांति बुद्धि हो स्थिर तब मन बस में आये /
प्रभु अनुकम्पा मिले आत्मा निज अधिपत्य जमाये //
ॐ नाद अंत; में गूँजे मनुवाँ खेले फाग /
नर जब ----------------------------------------------//३//
परमब्रह्म छवि दर्शन के हित ये नैना अकुलाये /
पलक बंद कर हिय में हेरें नित प्रेमाश्रु बहाये //
"मधुकर "वीणावादिनि माँ के स्वर से पाये राग /
नर जब --------------------------------------------//४//
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