भज मन गुप्तेश्वर ओंकार
भज मन गुप्तेश्वर ओंकार /
रमे राम के हिय सरसिज में , रहित समस्त विकार //
गुप्त गुफा में बैठे शिव निज तन में भस्म रमाई /
तीरे में अति पुण्य सलिल बह चलीं नर्मदा माई //
बहतीं जटाजूट से प्रभु के सुरसरि की जल धार /
भज मन ------------------------------------------- -----//१//
निराकार अव्यक्त ब्रह्म में, लगी अखंड समाधी /
डिगा सके नहिं ध्यान प्रकृति के, ताप त्रयी की आँधी //
वह स्वरुप हिय में चिंतन कर , नर मुनि हों भव पार /
भज मन -------------------------------------------------//२//
त्याग महल नित रहें सैल पर ,प्रभु होकर बैरागी /
धन सम्पति देते भक्तों को जो उनके अनुरागी //
औघड़दानी शंकर भोले जान रहा संसार /
भज मन ------------------------------------------------//३//
सोहे शिव के शीश चंद्रमा गले सर्प की माला /
भाल विशाल नेत्र में जलती सृष्टि विनाशक ज्वाला //
शिव तांडव जब करें धरा पर होय सृष्टि संहार /
भज मन -------------------------------------------------//४//
अस्त्र त्रिशूल वाद्य है डमरू डमड - डमड- डम बोले /
सम्मुख नंदी श्रंगी बैठे गूंजें स्वर बम भोले //
सावन भर होते शंकर के नित्य नये श्रृंगार /
भज मन -----------------------------------------------//५//
निज तन मन धन जो कर अर्पण शिव में ध्यान लगाये /
करे ॐ शिव जाप निरंतर अहम् न मन में आये //
"मधुकर" उनके सारे संकट करें महेश्वर छार /
भज मन ------------------------------------------------//६//
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