गुरु वन्दना
गुरु तुम ज्ञान ज्योति तमहारी /
हे योगी अविकारी //
प्रथम पूज्य पद शीश झुकाऊं ;करूँ वन्दना आरती गाऊं /
गुरुवार कैसे ध्यान लगाऊं ;सदगुरु की छवि तुम में पाऊं //
प्रभु दीजै उपदेश विमल हो कैसे बुद्धि हमारी /
गुरु तुम --------------------------------------------------------------//१//
गुरु सम हितकारी जन गण में, है कोई और न सृष्टि सृजन में /
हो जाये भव पार लगन में ; पूजे जो श्रद्धा से मन में //
गुरु भक्ति से हों प्रसन्न श्री हरि ब्रह्मा त्रिपुरारी /
गुरु तुम ---------------------------------------------------------------//२//
सेवा करे कपट छल त्यागे ;तब गुरु की अनुकम्पा जागे /
उस पर सदगुरु भी अनुरागे , सधें कार्य गुरु से बिन माँगे //
देकर ज्ञान प्रकाश करें गुरु स्थिर बुद्धि हमारी /
गुरु तुम -------------------------------------------------------------//३//
भजन जाप तप विधि नहिं जानू ;ध्यान समाधि न मैं पहचानू /
युक्ति कौन सी किसको ठानू, श्रेष्ठ देव ,किसको मैं मानू//
सब समझकर कहें आपकी वाणी है अघहारी /
गुरु तुम --------------------------------------------------------------//४//
बिन गुरु अनुकम्पा नहिं पाये ,प्रभु दर्शन कोई युक्ति लगाये /
कृपा करें यह मन हो जाये , वैरागी निर्गुण गति पाये //
"मधुकर" को सन्मार्ग दिखायें ;जन्म ,मरण दुखहारी /
गुरु तुम --------------------------------------------------------------//५//
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