Tuesday, 6 December 2011

गुरु वन्दना


          गुरु वन्दना
 
गुरु तुम ज्ञान ज्योति तमहारी /
हे          योगी       अविकारी //

प्रथम पूज्य  पद   शीश   झुकाऊं ;करूँ वन्दना  आरती  गाऊं /
गुरुवार कैसे ध्यान लगाऊं   ;सदगुरु   की  छवि तुम में पाऊं //
प्रभु   दीजै    उपदेश     विमल    हो    कैसे    बुद्धि    हमारी /
गुरु तुम --------------------------------------------------------------//१//        

गुरु सम हितकारी जन गण में, है कोई और न सृष्टि सृजन में / 
हो  जाये  भव  पार  लगन  में ;   पूजे   जो   श्रद्धा  से मन  में //
गुरु    भक्ति    से    हों    प्रसन्न   श्री    हरि   ब्रह्मा   त्रिपुरारी /
गुरु तुम ---------------------------------------------------------------//२//

सेवा करे कपट  छल  त्यागे   ;तब गुरु की   अनुकम्पा जागे /  
उस पर सदगुरु भी अनुरागे , सधें  कार्य  गुरु   से बिन माँगे //
देकर ज्ञान   प्रकाश    करें    गुरु    स्थिर     बुद्धि     हमारी /
गुरु तुम -------------------------------------------------------------//३//

भजन जाप तप विधि नहिं  जानू  ;ध्यान समाधि न मैं पहचानू /
युक्ति   कौन   सी   किसको   ठानू, श्रेष्ठ  देव  ,किसको मैं मानू//
सब    समझकर     कहें    आपकी     वाणी     है     अघहारी /
गुरु तुम --------------------------------------------------------------//४//

बिन  गुरु अनुकम्पा  नहिं  पाये ,प्रभु दर्शन कोई युक्ति लगाये /
कृपा करें यह मन  हो  जाये  ,  वैरागी   निर्गुण   गति  पाये //
"मधुकर" को   सन्मार्ग  दिखायें  ;जन्म    ,मरण  दुखहारी /
गुरु तुम --------------------------------------------------------------//५//

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