
हे सिद्धदेव प्रभु आवाहन कर करूँ तुम्हारी आरती /
दो सिद्धि मुझे चित स्थिर हो मम कंठ बसे माँ भारती //
घर द्वार नात रिश्ते सारे
यह सब उस प्रभु की है माया
यह बाग़ मनोहर है उसका
जिसमें सारा जग भरमाया
सब सुख़ नश्वर कहते गिरिधर यह ज्ञानी दृष्टि निहारती /
हे सिद्ध देव -------------------------------------------//१//
जब प्रभु के चौरे पर आया
मन हुआ शान्त बीती माया
तेरे तरु पीपल की छाया
में बरस रहा अमृत पाया
मन रमा देख स्थल प्यारा गुरुभाव तरंग पुकारती /
हे सिद्ध देव -------------------------------------//२//
तुम सदगुरु मेरे सिद्ध
शिष्य मैं तेरी सेवा में आया
लो शरण मुझे दो ज्ञान प्रभो
जो ध्यान लगा तुमने पाया
मैं नित्य जलाकर दीप करूँ हे सिद्ध तुम्हारी आरती /
हे सिद्ध देव ---------------------------------------//३//
जो है अक्षर जग व्याप्त अलख
छवि जिसने मुझे जगाया है
उसको पाने मन खोज रहा
अब शरण तुम्हारी आया है
आत्मा को अमृतमय कीजै "मधुकर"बन गाऊँ /
हे सिद्ध देव ---------------------------------//४//
डॉ उदय भानु तिवारी "मधुकर"
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